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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सोम देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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    सोमे॑नादि॒त्याब॒लिनः॒ सोमे॑न पृथि॒वी म॒ही। अथो॒ नक्ष॑त्राणामे॒षामु॒पस्थे॒ सोम॒ आहि॑तः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमे॑न । आ॒दि॒त्या: । ब॒लिन॑: । सोमे॑न । पृ॒थि॒वी । म॒ही । अथो॒ इति॑ । नक्ष॑त्राणाम् । ए॒षाम् । उ॒पऽस्थे॑ । सोम॑: । आऽहि॑त: ॥१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमेनादित्याबलिनः सोमेन पृथिवी मही। अथो नक्षत्राणामेषामुपस्थे सोम आहितः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमेन । आदित्या: । बलिन: । सोमेन । पृथिवी । मही । अथो इति । नक्षत्राणाम् । एषाम् । उपऽस्थे । सोम: । आऽहित: ॥१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मन्त्र १-५, प्रकाश करने योग्य और प्रकाशक के विषय काउपदेश।

    पदार्थ

    (सोमेन) चन्द्रमा केसाथ (आदित्याः) सूर्य की किरणें (बलिनः) बलवान् [होती हैं] और (सोमेन) चन्द्रमा [के प्रकाश] के साथ (पृथिवी) पृथिवी (मही) बलवती अर्थात् पुष्ट [होती है]। (अथो)और भी (एषाम्) इन (नक्षत्राणाम्) चलनेवाले तारागणों के (उपस्थे) समीप में (सोमः)चन्द्रमा (आहितः) ठहराया गया है ॥२॥

    भावार्थ

    चन्द्रमा शीतलस्वभावहै, सूर्य की किरणें उसके ऊपर गिर कर शीतल हो जाती हैं, और जब वे चन्द्रमा सेउलटकर वायु से मिलकर पृथिवी पर पड़ती हैं, तब शीतलता के कारण पृथिवी के अन्न आदिपदार्थों को पुष्ट करती हैं। इसी प्रकार सूर्य और चन्द्रमा का प्रभाव नक्षत्रोंपर होता है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(सोमेन) चन्द्रेण सह संयुज्य (आदित्याः) आदीप्यमानाः किरणाः (बलिनः) बलं कर्तुंशीला भवन्ति (सोमेन) चन्द्रप्रकाशेन सह (पृथिवी) (मही) बलवती।पुष्टा (अथो) अपि च (नक्षत्राणाम्) गतिशीलानां तारागणानाम् (एषाम्)दृश्यमानानाम् (उपस्थे) समीपे (सोमः) चन्द्रमाः (आहितः) स्थापितः ॥

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    विषय

    देवत्व शक्ति व विज्ञान

    पदार्थ

    १. (सोमेन) = शरीर में सोम [वीर्य] के रक्षण से ही (आदित्या:) = अदीना देवमाता के पुत्र, अर्थात् देव (बलिन:) = बलवाले होते हैं। सोम रक्षण से ही वे देव बन पाते हैं। शरीर में उत्पन्न होनेवाला, भोजन के रूप में ग्रहण की गई ओषधियों का सारभूत यह सोम [वीर्य] ही है। इसका रक्षण ही देवों को देवत्व प्राप्त कराता है। (सोमेन) = सोम से ही (पृथिवी) = शरीररूप पृथिवी (मही) = महनीय व महत्वपूर्ण बनती है। शरीर में सब वसुओं-निवास के लिए आवश्यक तत्वों का स्थापन इस सोम के द्वारा ही होता है। २. (उ) = और (अथ) = अब (एषां नक्षत्राणां उपस्थे) = इन विविध विज्ञान के नक्षत्रों की उपासना के निमित्त (सोमः) = यह सोम [वीर्य] (आहित:) = शरीर में स्थापित किया गया है। इस सोम के रक्षण से ज्ञानानि तीव्र होती है और इस प्रकार मनुष्य अपने मस्तिष्क-गगन में ज्ञान के नक्षत्रों का उदय कर पाता है।

    भावार्थ

    सोम रक्षा के तीन महत्त्वपूर्ण परिणाम हैं-[क] हृदय में देववृत्ति का प्रादुर्भाव, [ख] शरीर में शक्ति का स्थापन और [ग] मस्तिष्क में विज्ञान के नक्षत्रों का उदय।

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    भाषार्थ

    (सोमेन१) वीर्य द्वारा (आदित्याः) आदित्य ब्रह्मचारी (बलिनः) बलवान् होते हैं, (सोमेन) वीर्य द्वारा (पृथिवी) मातृशक्ति (मही) पूजनीया होती है। (अथो) तथा (एषाम्) इन (नक्षत्राणाम्) अक्षतवीर्यों तथा अक्षतयोनियों के (उपस्थे) उपस्थेन्द्रियों में (सोमः) वीर्य तथा रजस् (आहितः) स्थित होता है।

    टिप्पणी

    [पृथिवी = स्त्री। मन्त्र १ में भूमि शब्द द्वारा स्त्री का निर्देश किया है। इस के लिये मन्त्र १ पर टिप्पणी द्रष्टव्य है। मही= मह पूजायाम्। नक्षत्राणाम् =न + क्षत् + र। अर्थात् अक्षतवीर्य और अक्षतयोनि वाले पुरुषों और स्त्रियों के। उपस्थे= जननेन्द्रिय में। सोम शब्द द्वारा पुरुषनिष्ठ और स्त्रीनिष्ठ सन्तानोत्पादक-तत्त्व अर्थात् वीर्य और रजस् अभिप्रेत है। व्याख्या-- आदित्य ब्रह्मचारी वीर्य द्वारा बलवान होते हैं। ४८ वर्षों का ब्रह्मचारी आदित्य ब्रह्मचारी कहलाता है। स्त्री-ब्रह्मचारिणी भी रजस् शक्ति के कारण पूजनीया होती है। स्त्री का स्थान वह है जो कि भूमि और पृथिवी का है। बंजर पृथिवी अनुत्पादिका होती है। बीज डालने पर पृथिवी जब हरी-भरी हो जाती है तब उस की शोभा होती है। इसी प्रकार पुरुष के वीर्यरूपी बीज के कारण जब माता की गोद मानो हरी-भरी हो जाती है, तब माता बन कर स्त्री, पूजा तथा मान का स्थान बन जाती है। जिन का वीर्य या रजस् ब्रह्मचर्याश्रम में क्षत नहीं होता उनके ही उपस्थेन्द्रियों में गृहस्थाश्रम के काल में, वीर्य उपस्थित होता है, और जिन का वीर्य क्षत होता रहता है वे निर्वीय हो जाते हैं, और गृहस्थ जीवन के उचित समय में उन की उपस्थेन्द्रियों में वीर्य की उपस्थिति नहीं होने पाती। वे सन्तान-कर्म के लिये निःशक्त हो जाते हैं। पृथिवी = प्रथ-विस्तारे। माता सन्तानों द्वारा समाज का विस्तार करती है।] [१. सोम शब्द यद्यपि वीर्यार्थक है। परन्तु इन मन्त्रों में "सन्तानोत्पादक-तत्त्व" अर्थ लेना चाहिये, जो कि सोम शब्द का धात्वर्थ है। अतः सोमशब्द द्वारा वीर्य और रजस् दोनों अर्थ अभिप्रेत है।]

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    विषय

    गृहाश्रम प्रवेश और विवाह प्रकरण।

    भावार्थ

    (आदित्याः) आदित्य ब्रह्मचारीगण (सोमेन) वीर्य के बल से (बलिनः) बलवान् रहते हैं। (सोमेन) सोम, वीर्य के बल पर ही (पृथिवी) यह पृथिवी, भूमिरूप स्त्री भी (मही) पूज्य, बड़ी शक्तिशालिनी है। (अथो) और (एषाम्) इन (नक्षत्राणाम्) नक्षत्रों के (उपस्थे) समीप, बीच में (सोमः) चन्द्र के समान (नक्षत्राणाम्) अपने स्थान से च्युत न होने वाले दृढ तपस्वियों के बीच भी (सोमः) वीर्य ही (आहितः) स्थित होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। आत्मा देवता। [१-५ सोमस्तुतिः], ६ विवाहः, २३ सोमार्कों, २४ चन्द्रमाः, २५ विवाहमन्त्राशिषः, २५, २७ वधूवासः संस्पर्शमोचनौ, १-१३, १६-१८, २२, २६-२८, ३०, ३४, ३५, ४१-४४, ५१, ५२, ५५, ५८, ५९, ६१-६४ अनुष्टुभः, १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १५ आस्तारपंक्तिः, १९, २०, २३, २४, ३१-३३, ३७, ३९, ४०, ४५, ४७, ४९, ५०, ५३, ५६, ५७, [ ५८, ५९, ६१ ] त्रिष्टुभः, (२३, ३१२, ४५ बृहतीगर्भाः), २१, ४६, ५४, ६४ जगत्यः, (५४, ६४ भुरिक् त्रिष्टुभौ), २९, २५ पुरस्ताद्बुहत्यौ, ३४ प्रस्तारपंक्तिः, ३८ पुरोबृहती त्रिपदा परोष्णिक्, [ ४८ पथ्यापंक्तिः ], ६० पराऽनुष्टुप्। चतुःषष्ट्यृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    By Soma, the Adityas are strong, by Soma, the earth is great, and Soma is safely secured, collected in the vital systems of the Nakshatras. (Aditya Brahmacharis are strong by vital energy of Soma, Brahmacharinis are strong by the vital energy of virgin fertility, and soma, vital energy is built up and secured by Brahmacharya in the vital organs of the body.)

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    Translation

    By the elixir of divine love, the solar regions are strong; by the divine elixir, the earth is great; the divine elixir is stationed in the midst of all the constellations. (Rg. X.85.2)

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    Translation

    The Adityas are strong by Soma; the grand earth is also strong by the Soma: Soma is placed in the interior of constellations.

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    Translation

    By Soma the Aditya Brahmcharis are strong. By Soma the woman like the earth is mighty. Soma rests in steadfast ascetics like Moon in the midst of these constellations.

    Footnote

    Soma means semen

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(सोमेन) चन्द्रेण सह संयुज्य (आदित्याः) आदीप्यमानाः किरणाः (बलिनः) बलं कर्तुंशीला भवन्ति (सोमेन) चन्द्रप्रकाशेन सह (पृथिवी) (मही) बलवती।पुष्टा (अथो) अपि च (नक्षत्राणाम्) गतिशीलानां तारागणानाम् (एषाम्)दृश्यमानानाम् (उपस्थे) समीपे (सोमः) चन्द्रमाः (आहितः) स्थापितः ॥

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