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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 36
    ऋषिः - आत्मा देवता - सोम छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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    येन॑ महान॒घ्न्याज॒घन॒मश्वि॑ना॒ येन॑ वा॒ सुरा॑। येना॒क्षा अ॒भ्यषि॑च्यन्त॒ तेने॒मांवर्च॑सावतम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । म॒हा॒ऽन॒घ्न्या: । ज॒घन॑म् । अश्वि॑ना । येन॑ । वा॒ । सुरा॑ । येन॑ । अ॒क्षा: । अ॒भि॒ऽअसि॑च्यन्त । तेन॑ । इ॒माम् । वर्च॑सा । अ॒व॒त॒म् ॥१.३६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन महानघ्न्याजघनमश्विना येन वा सुरा। येनाक्षा अभ्यषिच्यन्त तेनेमांवर्चसावतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । महाऽनघ्न्या: । जघनम् । अश्विना । येन । वा । सुरा । येन । अक्षा: । अभिऽअसिच्यन्त । तेन । इमाम् । वर्चसा । अवतम् ॥१.३६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 36
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विवाह संस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (येन) जिस [तेज] केकारण (महानघ्न्याः) अत्यन्त निर्दोष स्त्री के (जघनम्) पौरुष, (येन) जिस के कारण (सुरा) ऐश्वर्य [लक्ष्मी], (वा) और (येन) जिस करके (अक्षाः) सब व्यवहार (अभ्यषिच्यन्त) सींचे जाते हैं [बढ़ाये जाते हैं], (अश्विना) हे विद्या कोप्राप्त दोनों [स्त्री-पुरुष समूहो !] (तेन वर्चसा) उस तेज से (इमाम्) इस [वधू]को (अवतम्) शोभायमान करो ॥३६॥

    भावार्थ

    सब स्त्री-पुरुष मिकरउपाय करें कि वधू बड़ी-बड़ी स्त्रियों के समान पौरुष, ऐश्वर्य और व्यवहार बढ़ाकरतेजस्विनी होवे ॥३६॥

    टिप्पणी

    ३६−(येन) वर्चसा (महानघ्न्याः) कप्रकरणे मूलविभुजादिभ्यउपसङ्ख्यानम्। वा० पा० ३।२।५। महा+न+हन हिंसागत्योः-क, ङीप्। न हन्तव्या नदण्डनीया सा नघ्नी तस्याः। अतिशयेन निर्दोषायाः स्त्रियाः (जघनम्) हन्तेःशरीरावयवे च। उ० ५।३२। हन हिंसागत्योः-अच्, द्वित्वं च धातोः। गमनम्। पौरुषम् (अश्विनौ) हे प्राप्तविद्यौ स्त्रीपुरुषसमूहौ (येन) (वा) समुच्चये (सुरा) म० ३५।ऐश्वर्यम्। लक्ष्मीः (येन) (अक्षाः) व्यवहाराः (अभ्यषिच्यन्त) अभिषिक्ता भवन्ति।वृद्धिं गम्यन्ते ॥

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    विषय

    प्राणसाधना द्वारा वर्चस् की प्राप्ति

    पदार्थ

    १. (येन वर्चसा) = जिस वर्चस् से, शक्ति से (महान् अघ्न्या) = महनीय [पूजनीय] व न हन्तव्य गौ का (जघनम्) = जघन प्रदेश [निचला दुग्धाशय प्रदेश] सिक्त होता है, (वा) = अथवा (येन) = जिस वर्चस् से (सुरा) = ऐश्वर्य से सिक्त होता है, (येन) = जिस वर्चस् से (अक्षा:) = ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान (अभ्यषिच्यन्त) = सिक्त होती हैं, (तेन) = उस वर्चस् से हे (अश्विना) = प्राणापानो। (इमाम् अवताम्) = इस युवति को प्रीणित करो। २. एक युवति प्राणसाधना करती हुई उस वर्चस् को प्रास करे जो अहन्तव्य गौ के दुग्धाशय को प्राप्त है, जो ऐश्वर्यशाली को प्राप्त है और जो ज्ञानियों को प्राप्त है।

    भावार्थ

    एक गृहस्थ युवति के लिए प्राणसाधना आवश्यक है। यह प्राणसाधना ही तेजस्विता प्राप्त करानेवाली सर्वोत्तम क्रिया है।

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    भाषार्थ

    (येन) जिस (वर्चसा) तेज द्वारा (महानघ्न्याः) महा-अवध्या गौ का (जघनम्) ऊधस् सींचा गया है, (वा) तथा (येन) जिस तेज द्वारा (सुरा) जल सींचा गया है, (येन) जिस तेज द्वारा (अक्षाः) रथों की धुराएं (अभ्यषिच्यन्त) सींची गई हैं, (अश्विना) हे वर के माता-पिता! (तेन) उस तेज द्वारा (इमाम्) इस वधू को तुम (अवतम्) कान्तिमती करो या सींचो।

    टिप्पणी

    [महाघ्न्याः१=महा+न+घ्नी (अघ्नी)। अघ्न्या गोनाम (निघं० २।११)। अवतम्=अव् कान्तौ। ह्विटनी ने अथर्ववेद के अंग्रेजी अर्थों में “महानघ्न्याः जघनम्" का अर्थ किया है “Back sides of courteugan" अर्थात् ‘वैश्या का नितम्ब भाग'। कितना भ्रष्ट अर्थ है। क्या नववधू को वैश्या बनने का उपदेश वर के माता-पिता देंगे? जघनम् द्वारा यदि गौ की उत्पादक इन्द्रिय भी अभिप्रेत हो तो इस द्वारा केवल यह अभिप्राय सम्भव है कि नववधू सात्विक सन्तानों की जननी हो, गौ की तरह। मन्त्र ३५ की दृष्टि से ‘महानघ्नी' द्वारा गौ का ही ग्रहण समझना चाहिये] [व्याख्या— वेदों में गौ का नाम “अघ्न्या" भी है। अघ्न्या का अर्थ है “न हनन करने योग्या"। इस से स्पष्ट है कि वेदों में गौ की हत्या का निषेध है। इसी प्रकार बैल के लिए “अघ्न्यः" शब्द वेदों में पठित है। यथा “गवां यः पतिरघ्न्यः" (अथर्व० ९।४।१७)। इस द्वारा बैल की हत्या का भी निषेध किया है। मन्त्र में गौ के लिए “महानघ्नी" शब्द का प्रयोग हुआ है, इस से गौ को “महा-अवध्या" कहा है, क्योंकि गौ दूध आदि द्वारा महोपकारिणी है। गौ के ऊधः स्थल में दूधरूपी तेज होता है, जिस द्वारा गौ अपने बच्चे को तेजस्वी बनाती है। नववधू माता बन कर अपने उत्तम और सात्विक दूध द्वारा अपने बच्चों को तेजस्वी बनाया करे,—यह उपदेश मन्त्र द्वारा नववधू को दिया गया है। सुरा अर्थात् जल, और अक्ष अर्थात् धुरा, के तेज से जो उपदेश नववधू को लेना चाहिये उस का वर्णन मन्त्र ३५ वें में किया गया है।] [१. सम्भवतः वेद में, गौ के लिए, नघ्नी=अघ्नी और अघ्न्या दोनों प्रयुक्त हुए हैं।]

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    विषय

    गृहाश्रम प्रवेश और विवाह प्रकरण।

    भावार्थ

    (येन) जिस (वर्चसा) तेज या चित्ताकर्षक मनोहरता से (महानन्याः) बड़ी नंगी = महावैश्या का (जघनम्) भोगस्थान युक्त है और (येन वा) जिस चिताकर्षक गुण से (सुरा) सुरा, मद्य या स्त्री परिपूर्ण है और (येन) जिस चित्ताकर्षक गुण से (अक्षाः) जूए के पासे या इन्द्रियें (अभिअसिच्यन्त) भरे पूरे रहते हैं (तेन) उस (वर्चसा) चित्ताकर्षक गुणमय तेज से (इमां) इस स्त्री को हे (अश्विनौ) स्त्री पुरुषो या कन्या या वर के माता पिताओ तुम भी (अवतम्) सुशोभित करो। साधारण लोग जिस चित्ताकर्षण से वेश्या, मद्य और जूओं में झुकते है वह सब प्रलोभक चित्ताकर्षक गुण उस नववधू में प्राप्त हों जिससे नवविवाहित अपनी स्त्री को त्याग कर अन्य व्यसनों में मनोयोग न दे।

    टिप्पणी

    ‘महानघ्न्याः’ इति सर्वत्र प्रायिकः पाठः। ‘महानग्न्याः’ इति ह्विटनिग्रीफिथादयः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। आत्मा देवता। [१-५ सोमस्तुतिः], ६ विवाहः, २३ सोमार्कों, २४ चन्द्रमाः, २५ विवाहमन्त्राशिषः, २५, २७ वधूवासः संस्पर्शमोचनौ, १-१३, १६-१८, २२, २६-२८, ३०, ३४, ३५, ४१-४४, ५१, ५२, ५५, ५८, ५९, ६१-६४ अनुष्टुभः, १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १५ आस्तारपंक्तिः, १९, २०, २३, २४, ३१-३३, ३७, ३९, ४०, ४५, ४७, ४९, ५०, ५३, ५६, ५७, [ ५८, ५९, ६१ ] त्रिष्टुभः, (२३, ३१२, ४५ बृहतीगर्भाः), २१, ४६, ५४, ६४ जगत्यः, (५४, ६४ भुरिक् त्रिष्टुभौ), २९, २५ पुरस्ताद्बुहत्यौ, ३४ प्रस्तारपंक्तिः, ३८ पुरोबृहती त्रिपदा परोष्णिक्, [ ४८ पथ्यापंक्तिः ], ६० पराऽनुष्टुप्। चतुःषष्ट्यृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    The lustre and splendour with which the udder of the unviolated cow, or the inspiring water, or the axes of honourable actions are infused, with that same lustre and splendour, O Ashvins, complementary powers of nature and humanity, bless and protect this bride.

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    Translation

    The attractiveness, with which the thighs of a stark naked lady are endowed, or with which the wine (is endowed); with which dice have been sprinkled, with that attractiveness, may you invest this maiden.

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    Translation

    Let Ashvinau, Prana and Apana adorn this bride with that sheen or splendor by whatever are filled these Akshas, the organs of body, by whatever is endowed the Sura woman having good bodily strength, by whatever is in the thigh of the woman having great sexual appetite.

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    Translation

    With all the luster that accompanies the valour of an imniaeulate woman, with all the luster of pelf, with all the luster that lurks in the eyes of lovers, O ladies and gentlemen, adorn this dame therewith.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३६−(येन) वर्चसा (महानघ्न्याः) कप्रकरणे मूलविभुजादिभ्यउपसङ्ख्यानम्। वा० पा० ३।२।५। महा+न+हन हिंसागत्योः-क, ङीप्। न हन्तव्या नदण्डनीया सा नघ्नी तस्याः। अतिशयेन निर्दोषायाः स्त्रियाः (जघनम्) हन्तेःशरीरावयवे च। उ० ५।३२। हन हिंसागत्योः-अच्, द्वित्वं च धातोः। गमनम्। पौरुषम् (अश्विनौ) हे प्राप्तविद्यौ स्त्रीपुरुषसमूहौ (येन) (वा) समुच्चये (सुरा) म० ३५।ऐश्वर्यम्। लक्ष्मीः (येन) (अक्षाः) व्यवहाराः (अभ्यषिच्यन्त) अभिषिक्ता भवन्ति।वृद्धिं गम्यन्ते ॥

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