अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 29
ऋषिः - आत्मा
देवता - पुरस्ताद् बृहती
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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तृ॒ष्टमे॒तत्कटु॑कमपा॒ष्ठव॑द्वि॒षव॒न्नैतदत्त॑वे। सू॒र्यां यो ब्र॒ह्मा वेद॒ सइद्वाधू॑यमर्हति ॥
स्वर सहित पद पाठतृ॒ष्टम् । ए॒तत् । कटु॑कम् । अ॒पा॒ष्ठऽव॑त् । वि॒षऽव॑त् । न । ए॒तत् । अत्त॑वे । सू॒र्याम् । य: । ब्र॒ह्मा । वेद॑ । स: । इत् । वाधू॑ऽयम् । अ॒र्ह॒ति॒ ॥१.२९॥
स्वर रहित मन्त्र
तृष्टमेतत्कटुकमपाष्ठवद्विषवन्नैतदत्तवे। सूर्यां यो ब्रह्मा वेद सइद्वाधूयमर्हति ॥
स्वर रहित पद पाठतृष्टम् । एतत् । कटुकम् । अपाष्ठऽवत् । विषऽवत् । न । एतत् । अत्तवे । सूर्याम् । य: । ब्रह्मा । वेद । स: । इत् । वाधूऽयम् । अर्हति ॥१.२९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विवाह संस्कार का उपदेश।
पदार्थ
(एतत्) यह [पूर्वोक्तशुभ लक्षण वधू-वर के विरोध में] (तृष्टम्) दाहजनक, (कटुकम्) कडुवा [अप्रिय], (अपाष्ठवत्) अपस्थान [अपमान] युक्त और (विषवत्) विषसमान [होता है], (एतत्) यह [विरुद्धपन] (अत्तवे) प्रबन्ध करने के लिये (न) नहीं [होता]। (यः) जो (ब्रह्मा)ब्रह्मा [वेदवेत्ता पति] (सूर्याम्) प्रेरणा करनेवाली [वा सूर्य की चमक के समानतेजवाली] कन्या को (वेद) जानता है, (सः इत्) वही (वाधूयम्) विवाह कर्म के (अर्हति) योग्य होता है ॥२९॥
भावार्थ
जहाँ पर वधू-वर परस्परविरोधी निर्गुणी होते हैं, वहाँ गृहाश्रम में विपत्ति रहती है, और जब दोनोंपूर्ण विद्वान् और युवा होकर परस्पर गुण जानकर विवाह करते हैं, तब वे गृहाश्रममें आनन्द भोगते हैं ॥२९॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।८५।३४॥
टिप्पणी
२९−(तृष्टम्) दाहजनकम् (एतत्) पूर्वोक्तम् (कटुकम्) अप्रियम् (अपाष्ठवत्)अपस्थानेनापमानेन युक्तम् (विषवत्) विषसमानम् (न) निषेधे (एतत्) विरुद्धं कर्म (अत्तवे) तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। अत बन्धने-तवेन्। प्रबन्धं कर्तुम् (सूर्याम्) (यः) (ब्रह्मा) वेदज्ञः पतिः (वेद) जानाति (सः) (इत्) एव (वाधूयम्)वैवाहिकं विधानम् (अर्हति) कर्तुं योग्यो भवति। पूजयति ॥
विषय
पत्नी द्वारा भोजन की समुचित व्यवस्था
पदार्थ
१. सूर्या का सर्वमहान् कर्त्तव्य यह है कि भोजन की व्यवस्था को इसप्रकार सुन्दर व व्यवस्थित बनाये रक्खे कि घर में कोई अस्वस्थ हो ही नहीं। वह अनों के विषय में यह ध्यान रक्खे कि [क] (एतत् तष्टम्) = यह गरम भोजन अत्यन्त प्यास पैदा करनेवाला है। [ख] (कटुकम्) = ये कटु है, काटनेवाला है। [ग] (अपाठवत्) = यह फोकवाला है या कटिला-सा है [घ] (विषवत्) = यह विषैले प्रभाव को पैदा करनेवाला है, अत: (एतत अत्तवे न) = यह खाने योग्य नहीं। इसप्रकार वधू भोजन का पूरा ध्यान करे। २. पति को भी चाहिए कि वह पत्नी की मनोवृत्ति को समझे। समझकर इसप्रकार वर्ते कि पत्नी का जी दु:खी न हो। इस (सूर्याम्) = ज्ञानदीप्त, क्रियाशील वधू को (यः ब्रह्मा वेद) = जो विशाल हृदयवाला ज्ञानी पुरुष ठीक प्रकार से समझता है (सः इत्) = वह ही (वाधूयम् अर्हति) = इस वधू-प्राप्ति के कर्म के योग्य है। नासमझ पति पत्नी को कभी प्रसन्न नहीं रख सकता।
भावार्थ
वधू पाकस्थान की अध्यक्षता करती हुई न खाने योग्य अन्नों को घर से दूर रक्खे। पति भी पत्नी की मनोवृत्ति को समझता हुआ अपने व्यवहार से उसे सदा प्रसन्न रक्खे।
भाषार्थ
(एतत्) यह [अन्नम्] अन्न (तृष्टम्) तृषाजनक है, अधिक प्यास लगाने वाला तथा दाहजनक है (कटुकम्) यह अन्न परिणाम में कटु है, (अपाष्ठवत्) यह अन्न निःसार है, (विषवत्) यह अन्न विषैला है, (अत्तवे, न) यह अन्न खाने योग्य नहीं है—इस प्रकार के अन्न विज्ञान वाली (सूर्याम्) सूर्या ब्रह्मचारिणी को, (यः) जो (ब्रह्मा) वेदवित् तथां ब्रह्मज्ञ विद्वान् (वेद) जानता, अर्थात् उस के इन गुणों से परिचित है, (स , इत्) वह ही (वाधूयम्) सूर्या के साथ वधूकर्म या विवाह के (अर्हति) योग्य होता है।
टिप्पणी
[तृष्टम् = तृषा पिपासायाम्, तथा दाहजनकम् (वाचस्पत्य कोष)। कटुकम्=यो जिह्वाग्रं बाधते, उद्वेगं जनयति, शिरो गृह्णीते, नासिकां स्रावयति सः कटुकः (सुश्रुत)। sharp, sungenr, hot, disagreeable, u pleasent (आप्टे)। अपाष्ठवत्=अपगता आस्था यस्मात् तद्वत्, जिस में से सार निकल गया हो एसा अन्न] [व्याख्या—सूर्या ब्रह्मचारिणी को आध्यात्मिक, मानसिक तथा सदाचार की शिक्षा के साथ साथ वस्त्र सम्बन्धी दस्तकारी, अन्नों के गुणावगुणों का ज्ञान, तथा उन की पाकविद्या की शिक्षा भी देनी चाहिये। वर्तमान में इसे गृह विज्ञान (Home-science) कहते हैं। जो ब्रह्मा सूर्या के इन गुणों को पसन्द करता है वही ब्रह्मा सूर्या के साथ विवाह का अधिकारी है।]
विषय
गृहाश्रम प्रवेश और विवाह प्रकरण।
भावार्थ
उस दशा में (एतत्) स्त्री का शरीर (तृष्टम्) तृषा, उष्णता का रोग उत्पन्न करता है (कटुकम्) कटु, देह पर चिरमराहट की फुन्सियां यदि विषम कष्ट उत्पन्न करता है (अपाष्ठवद्) घृणित वस्तु के समान और (विषवत्) विष से युक्त होता है। उस समय (एतत्) स्त्री का शरीर (अत्तवे न) भोग करने योग्य नहीं होता। (यः) जो (ब्रह्मा) ब्रह्मवेत्ता विद्वान् इस प्रकार (सूर्याम्) सन्तानोत्पन्न करने में समर्थ कन्या के लक्षण (वेद) जानता है या जो सूर्या कन्या को पति के हाथ प्राप्त करादे वह ब्रह्मा या जो सूर्या सूक्त को जानता हो (सः इत्) उसको ही (वाधूयम्) वाधूय = वधू के विवाह के अवसर के वस्त्र लेने (अर्हति) उचित हैं।
टिप्पणी
‘कटुकमेतत्’ (तृ०) ‘विद्यात्’ इति।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। आत्मा देवता। [१-५ सोमस्तुतिः], ६ विवाहः, २३ सोमार्कों, २४ चन्द्रमाः, २५ विवाहमन्त्राशिषः, २५, २७ वधूवासः संस्पर्शमोचनौ, १-१३, १६-१८, २२, २६-२८, ३०, ३४, ३५, ४१-४४, ५१, ५२, ५५, ५८, ५९, ६१-६४ अनुष्टुभः, १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १५ आस्तारपंक्तिः, १९, २०, २३, २४, ३१-३३, ३७, ३९, ४०, ४५, ४७, ४९, ५०, ५३, ५६, ५७, [ ५८, ५९, ६१ ] त्रिष्टुभः, (२३, ३१२, ४५ बृहतीगर्भाः), २१, ४६, ५४, ६४ जगत्यः, (५४, ६४ भुरिक् त्रिष्टुभौ), २९, २५ पुरस्ताद्बुहत्यौ, ३४ प्रस्तारपंक्तिः, ३८ पुरोबृहती त्रिपदा परोष्णिक्, [ ४८ पथ्यापंक्तिः ], ६० पराऽनुष्टुप्। चतुःषष्ट्यृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
Matrimony? It cab be roughshod, exasperating, thorny, bitter, all barbs, all poison, it is dangerous to flirt with it. Only the wise youth of divine vision who knows the light and sanctity of Surya, the sunny maiden, deserves the prize he may carry away.
Translation
This is thirst-causing, bitter, full of barbs, mixed with poison; it is not to be consumed. The wise man, who understands well the damsel of marriageable age, deserves indeed thebride’s garment. (Rg. X.85.34; Variation)
Translation
The co-habitation with wife (during menstruations Tristan, the disease-creating, bitter in result, abominable, poisonous and this is not able to be grasead or adopted. The learned husband (Brahma) who knows these aspects of Surya, the bride, deserves to enter contract of marriage.
Translation
At the time of menstruation the woman feels the pangs of thirst, perceives irritating pimples on the body like a despicable thing. The fluid she emits is empoisoned. In that condition she is not fit for cohabitation. A Vedic scholar who knows these signs of the woman, is fit for marriage.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२९−(तृष्टम्) दाहजनकम् (एतत्) पूर्वोक्तम् (कटुकम्) अप्रियम् (अपाष्ठवत्)अपस्थानेनापमानेन युक्तम् (विषवत्) विषसमानम् (न) निषेधे (एतत्) विरुद्धं कर्म (अत्तवे) तुमर्थे सेसेनसे०। पा० ३।४।९। अत बन्धने-तवेन्। प्रबन्धं कर्तुम् (सूर्याम्) (यः) (ब्रह्मा) वेदज्ञः पतिः (वेद) जानाति (सः) (इत्) एव (वाधूयम्)वैवाहिकं विधानम् (अर्हति) कर्तुं योग्यो भवति। पूजयति ॥
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