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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 4
    ऋषिः - सोम देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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    यत्त्वा॑ सोमप्र॒पिब॑न्ति॒ तत॒ आ प्या॑यसे॒ पुनः॑। वा॒युः सोम॑स्य रक्षि॒ता समा॑नां॒ मास॒आकृ॑तिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । त्वा॒ । सो॒म॒ । प्र॒ऽपिब॑न्ति । तत॑: । आ । प्या॒य॒से॒ । पुन॑: । वा॒यु: । सोम॑स्य । र॒क्षि॒ता । समा॑नाम् । मास॑: । आऽकृ॑ति: ॥१.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्त्वा सोमप्रपिबन्ति तत आ प्यायसे पुनः। वायुः सोमस्य रक्षिता समानां मासआकृतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । त्वा । सोम । प्रऽपिबन्ति । तत: । आ । प्यायसे । पुन: । वायु: । सोमस्य । रक्षिता । समानाम् । मास: । आऽकृति: ॥१.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मन्त्र १-५, प्रकाश करने योग्य और प्रकाशक के विषय काउपदेश।

    पदार्थ

    (सोमः) हे चन्द्रमा ! (यत्) जब (त्वा) तुझको (प्रपिबन्ति) वे [किरणें] पी जाती हैं, (ततः) तब (पुनः)फिर (आ प्यायसे) तू परिपूर्ण हो जाता है। (वायुः) पवन (सोमस्य) चन्द्रमा का (रक्षिता) रक्षक है और (मासः) सबका परिमाण करनेवाला [परमेश्वर] (समानाम्) अनुकूलक्रियाओं का (आकृतिः) बनानेवाला है ॥४॥

    भावार्थ

    जब चन्द्रमा के रस कोसूर्य की किरणें खीच लेती हैं, वह रस पृथिवी पर किरणों द्वारा आता और पदार्थोंको पुष्ट करता है, फिर वह पार्थिव रस किरणों से वायु द्वारा खिंचकर चन्द्रमा कोपहुँचता है। इस प्रकार चन्द्रमा ईश्वरनियम से प्राणियों का सदा उपकारी होता है॥४॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।८५।५ ॥

    टिप्पणी

    ४−(यत्) यदा (त्वा) (सोमः) हेचन्द्र (प्रपिबन्ति) आकर्षन्ति रश्मयः (ततः) अनन्तरम् (आ प्यायसे) प्रवर्द्धसे (पुनः) (वायुः) (सोमस्य) चन्द्रस्य (रक्षिता) रक्षकः (समानाम्) सम्-टाप्।अनुकूलानां क्रियाणाम् (मासः) मसी परिमाणे परिणामे च-घञ्। परिमाणकर्ता (आकृतिः)अकर्ता। रचयिता ॥

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    विषय

    आप्यायन व दीर्घजीवन

    पदार्थ

    १. हे (सोम) = वीर्यशक्ते! (यत्) = जब ज्ञानी पुरुष (त्वा प्रपिबन्ति) = तुझे प्रकर्षेण शरीर में ही पीने का प्रयत्न करते हैं (ततः) = तब (पुनः आप्यायसे) = फिर से तू शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्गों की शक्ति को आप्ययित कर देता है। तू शरीर को पुष्ट, मन को निर्मल व बुद्धि को तीन्न बनाता है। २. (वायुः सोमस्य रक्षिता) = वायु सौम का रक्षण करनेवाला है। वायु अर्थात् प्राणों की साधना शरीर में वीर्य की ऊवंगति का कारण बनती है। इस ऊर्ध्वगति से (मास:) = [मस्यते to change form] शरीर की आकृति को परिवर्तित कर देनेवाला, क्षीण अङ्गों को फिर से आप्यायित कर देनेवाला यह सोम (समानं आकृति:) = वर्षों का बनानेवाला होता है, अर्थात् सोमरक्षण से दीर्घ आयुष्य प्राप्त होता है।

    भावार्थ

    प्राण-साधना द्वारा सोम की ऊर्ध्वगति होती है। शरीर में रक्षित सोम सब अङ्ग प्रत्यङ्गों की शक्ति को बढ़ानेवाला व दीर्घजीवन प्राप्त करानेवाला होता है।

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    भाषार्थ

    (सोम) हे वीर्य अर्थात् सन्तानोत्पादक-तत्त्व ! (यत्) जब (त्वा) तुझे (प्र पिबन्ति) ब्रह्मचारी प्रकर्षरूप में पीते हैं, (ततः) तदनन्तर (पुनः) फिर अर्थात् और अधिक (आ प्यायसे) तू बढ़ता है। (वायुः) प्राणायाम (सोमस्य) वीर्य अर्थात् सन्तानोत्पादक-तत्त्व की (रक्षिता) रक्षा करता, (आकृतिः) तथा उस का निर्माण करता है, जैसे कि (मासः) मास (समानाम्) वर्षों का (आकृतिः) निर्माण करता है।

    टिप्पणी

    [व्याख्या- वीर्य के पान अर्थात् वीर्य को रक्त में अन्तर्लय करने पर वीर्य और अधिक बढ़ता है। प्राणायाम और शुद्ध वायु के सेवन से वीर्य की रक्षा और उस का निर्माण होता है। शुद्ध वायु और शुद्ध वायु में किये गए प्राणायाम द्वारा वीर्य के निर्माण में मास और वर्ष का दृष्टान्त दिया है। मास और वर्ष में परस्पर तादात्म्य सम्बन्ध है। मासों का समुदाय ही वर्ष होता है। इस दृष्टान्त द्वारा वेद ने यह दर्शाया है कि शुद्ध वायु और शुद्धवायु में किये गए प्राणायाम और वीर्य में भी तादात्म्य सा सम्बन्ध है। मानो शुद्ध वायु और प्राणायाम ही वीर्यरूप में परिणत हो जाते हैं। इस तादात्म्य सम्बन्ध को दर्शा कर वेद ने वीर्य के निर्माण तथा उस की रक्षा के सम्बन्ध में प्राणायाम का महत्त्व दर्शाया है। "समानाम्" में समा का अभिप्राय है, चान्द्रवर्ष। वेद में चन्द्रमा को मासों का निर्माता कहा है। यथा "अरुणो मासकृद वृकः" (ऋ० १।१०५।१८) की व्याख्या में निरक्तकार ने कहा है कि "अरुण आरोचनो, मासकृन्मासानां चार्धमासानां च कर्ता भवति चन्द्रमा, वृकः विवृतज्योतिष्को वा, विकृतज्योतिष्को वा विक्रान्त ज्योतिष्को वा" (५।४।२०, २१)। संवत्सर= सौरवर्ष। समाः संवत्सरान् मासान् भूतस्य पतये यजे (३।१०।९)]

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    विषय

    गृहाश्रम प्रवेश और विवाह प्रकरण।

    भावार्थ

    (यत्) जब (त्वा) तुझे हे (सोम) सोम ! (प्रपिबन्ति) लोग भरपूर होकर पी लेते या भोग लेते हैं (ततः) तिस पर भी तू (पुनः) फिर (आप्यायसे) बढ़कर समृद्ध हो जाता है। (वायुः) वायु, प्राण वायु (सोमस्य) सोम = वीर्य का (रक्षिता) रक्षक है। जैसे (समानां) वर्षो का (मासः) मास ही (आकृतिः) बनाने वाला होता है। अर्थात् जिस प्रकार चन्द्रमा क्षीण हो होकर पुनः बढ़कर पूरा हो जाता है उसी प्रकार क्रम से पूरा वर्ष भी व्यतीत हो जाता है। इसी प्रकार शरीर में वीर्य का व्यय होकर भी पुनः संचय हो जाता है। और इसी प्रकार मासों से पुनः पुनः वर्ष व्यतीत होते जाते हैं।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘यत् त्वा देव’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। आत्मा देवता। [१-५ सोमस्तुतिः], ६ विवाहः, २३ सोमार्कों, २४ चन्द्रमाः, २५ विवाहमन्त्राशिषः, २५, २७ वधूवासः संस्पर्शमोचनौ, १-१३, १६-१८, २२, २६-२८, ३०, ३४, ३५, ४१-४४, ५१, ५२, ५५, ५८, ५९, ६१-६४ अनुष्टुभः, १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १५ आस्तारपंक्तिः, १९, २०, २३, २४, ३१-३३, ३७, ३९, ४०, ४५, ४७, ४९, ५०, ५३, ५६, ५७, [ ५८, ५९, ६१ ] त्रिष्टुभः, (२३, ३१२, ४५ बृहतीगर्भाः), २१, ४६, ५४, ६४ जगत्यः, (५४, ६४ भुरिक् त्रिष्टुभौ), २९, २५ पुरस्ताद्बुहत्यौ, ३४ प्रस्तारपंक्तिः, ३८ पुरोबृहती त्रिपदा परोष्णिक्, [ ४८ पथ्यापंक्तिः ], ६० पराऽनुष्टुप्। चतुःषष्ट्यृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    O Soma, vital energy of the body system of youth, when the Brahmacharis drink you up, i.e., assimilate you into the body’s aura, ojas, you rise and grow more and more. Indeed, Vayu, pranic energy of nature, is the preserver and promoter of soma as a month is the constituent part of the year and the year grows by assimilation of months.

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    Translation

    As they consume you, O virile factor(Soma), you then swell up again. The wind element is the protector of the virile factor. The month is the shape of the years. (Rg. X.85.5; Variation)

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    Translation

    Whenever the bodies intervening and the forces eclipse the moon it (being relieved) increases again by phases. The Vayu, Air moving the heavenly bodies is the protector of the moon. The month is the maker of year.

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    Translation

    O Moon, thou wanest when the Sun’s rays drink thy juice, but thou waxest again. Air is the Moon’s sentinel, just as the month is the shaper of years!

    Footnote

    When the Sun’s rays draw the Moon’s juice, it comes down to the earth and strengthens vegetables and crops. The same juice is taken by the rays to the Moon again. Month shapes the years, so the rays of the Sun make the Moon wane and wax.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(यत्) यदा (त्वा) (सोमः) हेचन्द्र (प्रपिबन्ति) आकर्षन्ति रश्मयः (ततः) अनन्तरम् (आ प्यायसे) प्रवर्द्धसे (पुनः) (वायुः) (सोमस्य) चन्द्रस्य (रक्षिता) रक्षकः (समानाम्) सम्-टाप्।अनुकूलानां क्रियाणाम् (मासः) मसी परिमाणे परिणामे च-घञ्। परिमाणकर्ता (आकृतिः)अकर्ता। रचयिता ॥

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