Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 62
    ऋषिः - आत्मा देवता - सोम छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
    0

    अभ्रा॑तृघ्नींवरु॒णाप॑शुघ्नीं बृहस्पते। इ॒न्द्राप॑तिघ्नीं पु॒त्रिणी॒मास्मभ्यं॑ सवितर्वह॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अभ्रा॑तृऽघ्नीम् । व॒रु॒ण॒ । अप॑शुऽघ्नीम् । बृ॒ह॒स्प॒ते॒ । इन्द्र॑ । अप॑तिऽघ्नीम् । पु॒त्रिणी॑म् । आ । अ॒स्मभ्य॑म् । स॒वि॒त॒: । व॒ह॒ ॥१.६२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभ्रातृघ्नींवरुणापशुघ्नीं बृहस्पते। इन्द्रापतिघ्नीं पुत्रिणीमास्मभ्यं सवितर्वह॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभ्रातृऽघ्नीम् । वरुण । अपशुऽघ्नीम् । बृहस्पते । इन्द्र । अपतिऽघ्नीम् । पुत्रिणीम् । आ । अस्मभ्यम् । सवित: । वह ॥१.६२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 62
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विवाह संस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (वरुण) हे श्रेष्ठ ! (बृहस्पते) हे वेदवाणी के रक्षक ! (इन्द्र) हे बड़े ऐश्वर्यवाले ! (सवितः) हेप्रेरणा करनेवाले [वर !] (अभ्रातृघ्नीम्) भाइयों को न सतानेवाली, (अपशुघ्नीम्)पशुओं को न मारनेवाली, (अपतिघ्नीम्) पति को न दुःख देनेवाली और (पुत्रिणीम्)श्रेष्ठ पुत्रों को उत्पन्न करनेवाली [वधू] को (अस्मभ्यम्) हमारे हित के लिये (आवह) तू ले चल ॥६२॥

    भावार्थ

    सब विद्वान् लोगआशीर्वाद देवें कि विद्वान् समर्थ वर विदुषी व्यवहारकुशल वधू को गृहाश्रम कीसिद्धि के लिये आदरपूर्वक ग्रहण करे ॥६२॥इस मन्त्र का मिलान करो-ऋग्वेद१०।८५।४४ ॥

    टिप्पणी

    ६२−(अभ्रातृघ्नीम्) हन्तेः कः, मूलविभुजादित्वात्। भ्रातॄणामहन्त्रींसुखप्रदाम् (वरुण) हे श्रेष्ठ (अपशुघ्नीम्) पशूनां सुखयित्रीम् (बृहस्पते)बृहत्या वेदवाण्या रक्षक (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् (अपतिघ्नीम्)पत्युर्मोदयित्रीम् (पुत्रिणीम्) श्रेष्ठपुत्राणां जनयित्रीम् (अस्मभ्यम्)अस्माकं पितृपक्षाणां हिताय (सवितः) हे प्रेरक वर (आ वह) आनय ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अभ्रातृघ्नी, अपशुध्नी, अपतिघ्नी, पुत्रिणी

    पदार्थ

    १.हे (वरुण) = द्वेष का निवारण करनेवाले प्रभो! आप (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (अभातनीम् आवह) = उस पत्नी को प्राप्त कराइए जो द्वेषादि के द्वारा हमारे भाइयों को नष्ट करनेवाली न हो, अपितु जिसके कारण भाइयों का प्रेम परस्पर बढ़े। हे (बृहस्पते) = ज्ञान के स्वामिन् प्रभो! आप हमारे लिए ऐसी पत्नी प्राप्त कराइए जो (अपशुघ्नीम्) = घर के गौ आदि पशुओं को नष्ट करनेवाली न हो। उसे गोरक्षण आदि का ज्ञान हो। २. हे (इन्द्र) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! आप उस पत्नी का इस घर में प्रवेश कराइए, जो (अपतिघ्नीम्) = पति को नष्ट करनेवाली न हो। पत्नी जितेन्द्रिय हो। वह वासनामय जीवनवाली होगी तो पति को भोगप्रवण बनाकर क्षीणशक्ति कर डालेगी। हे (सवितः) = सर्वोत्पादक प्रभो! हमें उस पत्नी को प्राप्त कराइए जो (पुत्रिणीम्) = प्रशस्त पुत्रों को जन्म देनेवाली हो। वह गृहस्थ को एक पवित्र सन्तान-निर्माण का आश्रम समझे। इसे भोगस्थली न जाने।

    भावार्थ

    एक उत्तम पत्नी वरुण से निढेषता का पाठ पढ़कर भाइयों के प्रेम को बढ़ानेवाली होती है। बृहस्पतिरूप में प्रभु-स्मरण से स्वयं भी विदूषी बनने का प्रयत्न करती है। इस ज्ञान के द्वारा गवादि पशुओं का भी समुचित रक्षण करती है। जितेन्द्रिय होती हुई पति के विनाश का कारण नहीं होती और सविता के स्मरण से गृहस्थ को पवित्र सन्तान-निर्माण का आश्रम समझती है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (वरुण) हे श्रेष्ठ तथा पत्नी का वरण करने वाले ! (बृहस्पते) तथा बृहती वेदवाणी के विद्वन् ! (इन्द्र) हे आत्मिक शक्तिसम्पन्न ! (सवितः) और उत्पादनशक्ति से सम्पन्न पुत्र ! तू (अभ्रातृघ्नीम्) भाईयों का हनन न करने वाली, (अपशुघ्नीम्) पशुओं का हनन न करने वाली, (अपतिघ्नीम्) पति का हनन न करने वाली, (पुत्रिणीम्) पुत्र-पुत्रियों के उत्पादन में समर्थ वधू को (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (आ वह) ला।

    टिप्पणी

    [वरुणः=वृणोतीति (उणा० ३।५३) उत्तमः; महर्षि दयानन्द)] [व्याख्या– वरण करने वाले वर को उस के सम्बन्धी कहते हैं कि तू ऐसी वधू हमारे लिए ला जोकि। -(१) घर में आकर भाई बहिन आदि को कष्ट न पहुंचाए (अभ्रातृघ्नीम् )। (२) जो पशुहत्या कर के मांस भक्षिका न हो, तथा गौ आदि की पालना करे (अपशुघ्नीम्)। (३) जो पतिघातिनी न हो, पति को कष्ट न पहुँचाए (अपतिघ्नीम्)। (४) जो वन्ध्या न हो, सन्तानोत्पादन में सक्षम हो (पुत्रिणीम्)। ये चार गुण पत्नी के हैं। पति के चार गुण निम्नलिखित हैं:- (१) पति वरुण हो, आचार-विचार में श्रेष्ठ हो (वरुण), निर्गुणी, दुर्गुणी न हो। (२) पति बृहस्पति हो, वेदों का विद्वान् हो (बृहस्पते)। यथा - "वेदानधीत्य वेदौ वा वेदं वापि यथाक्रमम्। अविप्लुतब्रह्मचर्यो गृहस्थाश्रममाविशेत्" (मनु० ३।२)। (३) पति इन्द्र हो, अर्थात् आत्मिकशक्ति से सम्पन्न हो (इन्द्रः आत्मा, इन्द्रियाणां स्वामी), ताकि वह गृहस्थ को भोगस्थल न बना दे। (४) वह सन्तानोत्पादनशक्ति से सम्पन्न हो, निर्वीर्य, नपुंसक न हो (सवितः) ताकि वंश परम्परा चल सके।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    गृहाश्रम प्रवेश और विवाह प्रकरण।

    भावार्थ

    हे (वरुण) वरुण ! परमेश्वर ! हे (बृहस्पते) बृहस्पते, विश्वपते ! हे इन्द्र ! हे (सवितः) जगत् उत्पादक परमेश्वर (अस्मभ्यम्) हमारे लिये इस वधू को (अभ्रातृघ्नीम्) भ्राता का नाश न करने वाली (अपशुघ्नीम्) पशुओं का नाश न करने वाली और (अपतिघ्नीम्) पति का नाश न करने वाली (पुत्रिणीम्) पुत्र संतान वाली बना कर (अस्मभ्यं वह) हमें प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘अपातघ्नीं’ (तृ० च०) ‘इन्द्रापुत्रघ्नीं लक्ष्म्यं तामस्यै सवितः सुव’ इति आपस्त०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। आत्मा देवता। [१-५ सोमस्तुतिः], ६ विवाहः, २३ सोमार्कों, २४ चन्द्रमाः, २५ विवाहमन्त्राशिषः, २५, २७ वधूवासः संस्पर्शमोचनौ, १-१३, १६-१८, २२, २६-२८, ३०, ३४, ३५, ४१-४४, ५१, ५२, ५५, ५८, ५९, ६१-६४ अनुष्टुभः, १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १५ आस्तारपंक्तिः, १९, २०, २३, २४, ३१-३३, ३७, ३९, ४०, ४५, ४७, ४९, ५०, ५३, ५६, ५७, [ ५८, ५९, ६१ ] त्रिष्टुभः, (२३, ३१२, ४५ बृहतीगर्भाः), २१, ४६, ५४, ६४ जगत्यः, (५४, ६४ भुरिक् त्रिष्टुभौ), २९, २५ पुरस्ताद्बुहत्यौ, ३४ प्रस्तारपंक्तिः, ३८ पुरोबृहती त्रिपदा परोष्णिक्, [ ४८ पथ्यापंक्तिः ], ६० पराऽनुष्टुप्। चतुःषष्ट्यृचं सूक्तम्।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    O Varuna, O Brhaspati, O Indra, O Savita, pray lead and bring the bride to our home. O bridegroom, young man of noble qualities as Varuna, educated and enlightened with wide knowledge like Brhaspati, strong and powerful as Indra, and virile and brave as Savita, conduct home this bride who is noble and helpful to brothers and sisters, loving to the husband and kind to the animals of the home. Escort her for us, bring her home. And may God bless her as mother of noble children.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O venerable Lord, bring her, unharming the brothers; O Lord Supreme, bring her unharming the cattle; O resplendent Lord, bring her unharming the husband; O creator Lord, bring her blessed with children to us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Indra (Almighty) Varuna (all-worshipable) Brihaspati (master of all the world and vast space) Savitar (All creating God) ! may this bride kind to brothers, favorable to animals, gentle and affectionate to her husband and blessed with progeny come to us, the guardians of the husbands family.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    To us, O God, bring her, kind to brothers; bring her, O Lord of the universe, gentle to the cattle. Bring her, O God, gentle to her husband: bring her to us, O Creator of the world, the bearer of children !

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६२−(अभ्रातृघ्नीम्) हन्तेः कः, मूलविभुजादित्वात्। भ्रातॄणामहन्त्रींसुखप्रदाम् (वरुण) हे श्रेष्ठ (अपशुघ्नीम्) पशूनां सुखयित्रीम् (बृहस्पते)बृहत्या वेदवाण्या रक्षक (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् (अपतिघ्नीम्)पत्युर्मोदयित्रीम् (पुत्रिणीम्) श्रेष्ठपुत्राणां जनयित्रीम् (अस्मभ्यम्)अस्माकं पितृपक्षाणां हिताय (सवितः) हे प्रेरक वर (आ वह) आनय ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top