अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 53
ऋषिः - आत्मा
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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त्वष्टा॒ वासो॒व्यदधाच्छु॒भे कं बृह॒स्पतेः॑ प्र॒शिषा॑ कवी॒नाम्। तेने॒मां नारीं॑ सवि॒ताभग॑श्च सू॒र्यामि॑व॒ परि॑ धत्तां प्र॒जया॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्वष्टा॑ । वास॑: । वि । अ॒द॒धा॒त् । शु॒भे । कम् । बृह॒स्पते॑: । प्र॒ऽशिषा॑ । क॒वी॒नाम् । तेन॑ । इ॒माम् । नारी॑म् । स॒वि॒ता । भग॑: । च॒ । सू॒र्याम्ऽइ॑व । परि॑ । ध॒त्ता॒म् । प्र॒ऽजया॑ ॥१.५३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वष्टा वासोव्यदधाच्छुभे कं बृहस्पतेः प्रशिषा कवीनाम्। तेनेमां नारीं सविताभगश्च सूर्यामिव परि धत्तां प्रजया ॥
स्वर रहित पद पाठत्वष्टा । वास: । वि । अदधात् । शुभे । कम् । बृहस्पते: । प्रऽशिषा । कवीनाम् । तेन । इमाम् । नारीम् । सविता । भग: । च । सूर्याम्ऽइव । परि । धत्ताम् । प्रऽजया ॥१.५३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विवाह संस्कार का उपदेश।
पदार्थ
(त्वष्टा)सूक्ष्मदर्शी [आचार्य] (बृहस्पतेः) बड़ी वेदवाणियों की रक्षिका [बृहस्पतिपदवीवाली स्त्री] के (शुभे) शुभ [आनन्द] के लिये (कवीनाम्) बुद्धिमानों की (प्रशिषा) अनुमति से (कम्) आनन्द के साथ (वासः) वस्त्र [वेष] (वि) विशेष करके (अदधात्) दिया है। (तेन) इस कारण से (सूर्याम् इव) सूर्य की चमक के समान [शोभायमान] (इमाम् नारीम्) इस नारी [नर की पत्नी] को (सविता) प्रेरक विद्वानोंका समूह (च) और (भगः) ऐश्वर्यवान् पति, दोनों (प्रजया) प्रजा [सन्तान सेवक आदि]के साथ (परि) सब ओर से (धत्ताम्) धारण करें ॥५३॥
भावार्थ
जिस विदुषी स्त्री नेविद्या प्राप्त करके विद्वानों के समाज में बृहस्पति, स्नातक आदि पदवी लेकरविद्यासूचक वस्त्र अर्थात् वेष प्राप्त किया हो, विद्वान् लोग और पति उसकी सदाप्रतिष्ठा करें, जिससे वह उत्तम प्रजावाली होवे ॥५३॥
टिप्पणी
५३−(त्वष्टा)सूक्ष्मदर्श्याचार्यः (वासः) वस्त्रम्। वेषम् (वि) विशेषेण (अदधात्) दत्तवान् (शुभे) शुभाय। सुखाय (कम्) (बृहस्पतेः) बृहतीनां वेदवाणीनां रक्षिकायाः।बृहस्पतिपदवीयुक्तायाः स्त्रियाः (प्रशिषा) अनुमत्या (कवीनाम्) मेधाविनाम् (तेन)कारणेन (इमाम्) प्रसिद्धाम् (नारीम्) नरपत्नीम् (सविता) प्रेरको विद्वत्समूहः (भगः) ऐश्वर्यवान् पतिः (च) (सूर्याम् इव) सूर्यदीप्तिमिव शोभायमानाम् (परि)सर्वतः (धत्ताम्) धारयताम् (प्रजया) सन्तानसेवकादिना सह ॥
विषय
बृहस्पते कवीनाम् प्रशिषा
पदार्थ
१. (त्वष्टा) = देवशिल्पी, उत्तम गृहनिर्माता ने (बृहस्पते:) = उस ज्ञानी प्रभु की वेदोपदीष्ट प्रशिषा आज्ञा के अनुसार तथा (कवीनाम्) = ज्ञानियों के (प्रशिषा) = प्रशासन के अनुसार [Architect के निर्देशानुसार] (शुभे) = शोभा की वृद्धि के लिए के (वासः) = सुखप्रद वासगृह को (व्यदधात्) = बनाया है। २. (तेन) = उस वासगृह के द्वारा, उस घर में सम्यक् निवास के द्वारा (सूर्याम् इव इमां नारीम्) = सूर्या के समान दीप्त इस नारी को (सवितः भग: च) = निर्माणात्मक कार्यों में रुचिवाला यह ऐश्वर्य का विजेता पति (प्रजया परिधत्ताम्) = उत्तम प्रजा के हेतु से धारण करे। घर में सब व्यवस्था ठीक होने से मन:प्रसाद के कारण उत्तम सन्तानों का होना स्वाभाविक है।
भावार्थ
प्रभु द्वारा वेदोपदीष्ट प्रकार से तथा वास्तुकला-निपुण गृहालेखकर्ता [Archi tect] के निर्देशानुसार उत्तम शिल्पी द्वारा घर बनवाया जाए। उसमें प्रेरक व धन के अर्जक [eam] पति के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहती हुई यह पत्नी उत्तम प्रजावाली हो।
भाषार्थ
(बृहस्पतेः) वेदों के विद्वान् पुरोहित के तथा (कवीनाम्) विद्वानों के (प्रशिंषा) प्रशासन अर्थात् आज्ञा या निर्देश द्वारा, (त्वष्टा) कारीगर ने (शुभे) शोभा के लिए (कम्) सुखदायक (वासः) वस्त्र (व्यदधात्) निर्मित किया है, (तेन) उस वस्त्र द्वारा (सविता) वधू का उत्पादक पिता, (च) और (भगः) भगों से सम्पन्न वर; अर्थात् ये दोनों, (सूर्याम्, इव) सूर्या को जैसे, वैसे (इमाम्, नारीम्) इस विवाहित नारी को (प्रजया) सन्तानों समेत (परि धत्ताम्) ढांपा करें।
टिप्पणी
[व्याख्या- वधूपक्ष और वरपक्ष के पुरोहितों तथा विद्वानों के निर्देशानुसार वधू के वस्त्रों के निर्माण करने की आज्ञा कारीगरों को देनी चाहिये। वधू का पिता, तथा वधू का वर, दोनों उन वस्त्रों को वधू और उस की भावी सन्तानों को पहनने के लिए दिया करें। वस्त्र शोभाजनक होने चाहिये, तथा सुखदायक भी। केवल शोभा जनक नहीं। सूर्यामिव= मन्त्रों में आदित्य-ब्रह्मचारी तथा सूर्या-ब्रह्मचारिणी के विवाह का वर्णन मुख्यरूप में हुआ है। यह आदर्श विवाह है। "सूर्यामिव" द्वारा निचली कोटि की ब्रह्मचारिणियों तथा निचली कोटि के ब्रह्मचारियों के विवाह भी वेदाभिमत दर्शाएं हैं। ये वर-वधू रुद्र तथा वसु कोटि हैं।]
विषय
गृहाश्रम प्रवेश और विवाह प्रकरण।
भावार्थ
(बृहस्पतेः) महान् ब्रह्माण्ड और वेद के परिपालक परमेश्वर और आचार्य और अन्य (कवीनाम्) कान्तदर्शी, दीर्घदर्शी विद्वानों की (प्रशिषा) आज्ञा से (त्वष्टा) शिल्पी ने (शुभे) शोभा के लिये ही (वासः) वस्त्र और निवासगृह भी (व्यदधात् कम्) बनाये हैं (तेन) इसलिये (सविता) सर्वोत्पादक और (भगः च) ऐश्वर्यवान् प्रभु (इमां नारीम्) इस स्त्री को (सूर्याम् इव) अपनी जगद्-उत्पादनकारिणी शक्ति के समान ही (प्रजया) प्रजा से (परिधत्ताम्) युक्त करे।
टिप्पणी
(तृ०) ‘नार्यं’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। आत्मा देवता। [१-५ सोमस्तुतिः], ६ विवाहः, २३ सोमार्कों, २४ चन्द्रमाः, २५ विवाहमन्त्राशिषः, २५, २७ वधूवासः संस्पर्शमोचनौ, १-१३, १६-१८, २२, २६-२८, ३०, ३४, ३५, ४१-४४, ५१, ५२, ५५, ५८, ५९, ६१-६४ अनुष्टुभः, १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १५ आस्तारपंक्तिः, १९, २०, २३, २४, ३१-३३, ३७, ३९, ४०, ४५, ४७, ४९, ५०, ५३, ५६, ५७, [ ५८, ५९, ६१ ] त्रिष्टुभः, (२३, ३१२, ४५ बृहतीगर्भाः), २१, ४६, ५४, ६४ जगत्यः, (५४, ६४ भुरिक् त्रिष्टुभौ), २९, २५ पुरस्ताद्बुहत्यौ, ३४ प्रस्तारपंक्तिः, ३८ पुरोबृहती त्रिपदा परोष्णिक्, [ ४८ पथ्यापंक्तिः ], ६० पराऽनुष्टुप्। चतुःषष्ट्यृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
Tvashta, divine maker, has made the cloth for comfort and good fortune with the blessings of Brhaspati and the good wishes of poets and sages. Thereby may Savita and Bhaga adorn this bride with raiment and bless her with progeny like Surya, child of the sun.
Translation
The cosmic Architect (Tvastr) has made the garment for her weal and happiness by the direction of the Lord supreme and the sages. May the creator Lord and the Lord of good fortune endure this woman with this garment, as they endure a marriable maid with progeny.
Translation
O bride the relation of husband and wife is based in this world in conformity to the teachings of God and enlightened persons. Just as the electricity is permeating in all the objects, so you attain nice drestes, ornaments and happiness. from me for the sake of my Pleasure. May the all-creating super-excellent God bless this my wife with off-spring. Similarly I will keep you well-dressed and well-adorned.
Translation
The artisan, by order of God and the holy sages, hath prepared for glory this comfortable robe, Hence may the All-creating and Prosperous God bless with children this dame, glittering like the Sun.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५३−(त्वष्टा)सूक्ष्मदर्श्याचार्यः (वासः) वस्त्रम्। वेषम् (वि) विशेषेण (अदधात्) दत्तवान् (शुभे) शुभाय। सुखाय (कम्) (बृहस्पतेः) बृहतीनां वेदवाणीनां रक्षिकायाः।बृहस्पतिपदवीयुक्तायाः स्त्रियाः (प्रशिषा) अनुमत्या (कवीनाम्) मेधाविनाम् (तेन)कारणेन (इमाम्) प्रसिद्धाम् (नारीम्) नरपत्नीम् (सविता) प्रेरको विद्वत्समूहः (भगः) ऐश्वर्यवान् पतिः (च) (सूर्याम् इव) सूर्यदीप्तिमिव शोभायमानाम् (परि)सर्वतः (धत्ताम्) धारयताम् (प्रजया) सन्तानसेवकादिना सह ॥
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