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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 52
    ऋषिः - आत्मा देवता - सोम छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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    ममे॒यम॑स्तु॒पोष्या॒ मह्यं॑ त्वादा॒द्बृह॒स्पतिः॑। मया॒ पत्या॑ प्रजावति॒ सं जी॑व श॒रदः॑श॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मम॑ । इ॒यम् । अ॒स्तु । पोष्या॑ । मह्य॑म् । त्वा॒ । अ॒दा॒त् । बृ॒ह॒स्पति॑: । मया॑ । पत्या॑ । प्र॒जा॒ऽव॒ति॒ । सम् । जी॒व॒ । श॒रद॑: । श॒तम् ॥१.५२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ममेयमस्तुपोष्या मह्यं त्वादाद्बृहस्पतिः। मया पत्या प्रजावति सं जीव शरदःशतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मम । इयम् । अस्तु । पोष्या । मह्यम् । त्वा । अदात् । बृहस्पति: । मया । पत्या । प्रजाऽवति । सम् । जीव । शरद: । शतम् ॥१.५२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 52
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    हिन्दी (4)

    विषय

    विवाह संस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (इयम्) यह [पत्नी] (मम) मेरे (पोष्या) पोषणयोग्य (अस्तु) होवे, (मह्यम्) मुझको (त्वा) तुझे (बृहस्पतिः) बड़े लोकों के स्वामी [परमात्मा] ने (अदात्) दिया है। (प्रजावति) हेश्रेष्ठ प्रजावाली ! तू (मया पत्या) मुझ पति के साथ (सम्) मिलकर (शतम्) सौ (शरदः) वर्षों तक (जीव) जीती रहे ॥५२॥

    भावार्थ

    पति को योग्य है किवस्त्र, अलंकार आदि पदार्थों से पत्नी का सन्मान करता रहे, जिससे दम्पती प्रसन्नरहकर सन्तान आदि का पालन-पोषण करते हुए पूर्ण आयु भोगें ॥५२॥

    टिप्पणी

    ५२−(मम) (इयम्)पत्नी (अस्तु) (पोष्या) पोषणीया (मह्यम्) पत्ये (त्वा) त्वां पत्नीम् (अदात्)दत्तवान् (बृहस्पतिः) बृहतां लोकानां पालकः परमात्मा (मया) (पत्या) भर्त्रा (प्रजावति) हे सन्तानसेवकादियुक्ते (सम्) मिलित्वा (जीव) प्राणान् धारय (शरदः)वर्षाणि (शतम्) ॥

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    विषय

    ममेयमस्तु पोष्या

    पदार्थ

    १. (इयम्) = यह पत्नी (मम पोष्या अस्तु) = मेरी पोषणीय हो। मैं घर में पोषण के लिए आवश्यक वस्तुओं की कमी न होने दूं। (मह्यम्) = मेरे लिए (त्वा) = तुझे (बृहस्पति: अदात्) = ब्रह्मणस्पति प्रभु ने प्राप्त कराया है, दिया है। प्रभु की कृपा से ही यह हमारा सम्बन्ध हुआ है। है (प्रजावति) = उत्तम सन्तानों को जन्मदेनेवाली सुभगे! तू (मया पत्या) = मुझ पति के साथ (शरदः शतम्) = शतवर्षपर्यन्त (संजीव) = सम्यक् जीनेवाली हो। हम दोनों मिलकर इस गृहस्थयज्ञ को सम्यक् सम्पन्न करें।

    भावार्थ

    गृहपति यह अपना सर्वाधिक आवश्यक कर्तव्य समझे कि घर में पोषण के लिए आवश्यक सामग्री में कमी न हो। पत्नी भी इस सम्बन्ध को प्रभु प्रेरणा से हुआ-हुआ समझती हुई पति के साथ प्रेम से गृहस्थयज्ञ में उत्तम सन्तानोंवाली बने।

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    भाषार्थ

    (इयम्) यह वधू (मम) मेरी (पोष्या) पोषणीया (अस्तु) हो, हे वधु ! (बृहस्पतिः) वेदों के विद्वान् पुरोहित ने या महाब्रह्माण्ड के पति परमेश्वर ने (मह्यम्) मेरे प्रति (त्वा) तुझे (अदात्) दिया है। (मया पत्या) मुझ पति द्वारा (प्रजावति) हे उत्कृष्ट सन्तानों से सम्पन्न होने वाली ! तू (सम्) मेरे साथ (शतम्, शरदः) सौ वर्षो की आयु पर्यन्त (जीव) जीवित रह।

    टिप्पणी

    [बृहस्पतिः = बृहस्पति र्वै देवानां पुरोहितः (ऐत० ब्रा० ८।२६)] [व्याख्या — मन्त्र के प्रथमार्ध द्वारा वर विवाह मण्डप में उपस्थित जनता के प्रति कहता है कि यह वधू मुझ द्वारा पोष्या होगी। मैं सदा इस का भरण-पोषण करता रहूंगा। तथा उत्तरार्ध द्वारा वधू को कहता है कि मुझ से भिन्न किसी परपुरुष द्वारा तूने प्रजावती नहीं होना।]

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    विषय

    गृहाश्रम प्रवेश और विवाह प्रकरण।

    भावार्थ

    (मम) मेरी (इयम्) यह वधू (पोष्या) पोषण करने योग्य (अस्तु) हो। हे वधू ! (त्वा) तुझको (बृहस्पतिः) वेद के विद्वान् आचार्य और समस्त संसार के स्वामी परमेश्वरने (मह्यम्) मेरे हाथ (अदात्) सौंपा है। हे (प्रजावति) उत्तम प्रजा उत्पन्न करने में समर्थ भाविनी प्रजावति ! तू (मया पत्या) मुझ पति के साथ (शतम्) सौ (शरदः) वर्ष तक (सं जीव) भली प्रकार जीवन धारण कर।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘प्रजावती’ इति क्वचित्। (प्र०) ‘ध्रुवैधि पोष्ये मयि’ इति ऋ० खिलेषु।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। आत्मा देवता। [१-५ सोमस्तुतिः], ६ विवाहः, २३ सोमार्कों, २४ चन्द्रमाः, २५ विवाहमन्त्राशिषः, २५, २७ वधूवासः संस्पर्शमोचनौ, १-१३, १६-१८, २२, २६-२८, ३०, ३४, ३५, ४१-४४, ५१, ५२, ५५, ५८, ५९, ६१-६४ अनुष्टुभः, १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १५ आस्तारपंक्तिः, १९, २०, २३, २४, ३१-३३, ३७, ३९, ४०, ४५, ४७, ४९, ५०, ५३, ५६, ५७, [ ५८, ५९, ६१ ] त्रिष्टुभः, (२३, ३१२, ४५ बृहतीगर्भाः), २१, ४६, ५४, ६४ जगत्यः, (५४, ६४ भुरिक् त्रिष्टुभौ), २९, २५ पुरस्ताद्बुहत्यौ, ३४ प्रस्तारपंक्तिः, ३८ पुरोबृहती त्रिपदा परोष्णिक्, [ ४८ पथ्यापंक्तिः ], ६० पराऽनुष्टुप्। चतुःषष्ट्यृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    This bride now would be my responsibility to maintain. Brhaspati, lord of the grand universe, has given and entrusted you unto me. The high priest, sagely scholar of the Vedas, has confirmed the gift to me, socially. You now live happy with me, your husband, unto a full hundred years enjoying the company of noble children.

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    Translation

    Let it be my care to nourish her. The Lord supreme has - given you to me. May yòu, blessed with children, live with me, your husband, through a hundred autumns.

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    Translation

    O bride! that you, whom the protector of the universe gave to me, remain supported and nourished by me, O Ye procreating lady may you live hundred autumns delightfully with me as your husband.

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    Translation

    May it be my care to foster her: God hath made thee mine. A hundred autumns live with me thy husband, mother of my sons.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५२−(मम) (इयम्)पत्नी (अस्तु) (पोष्या) पोषणीया (मह्यम्) पत्ये (त्वा) त्वां पत्नीम् (अदात्)दत्तवान् (बृहस्पतिः) बृहतां लोकानां पालकः परमात्मा (मया) (पत्या) भर्त्रा (प्रजावति) हे सन्तानसेवकादियुक्ते (सम्) मिलित्वा (जीव) प्राणान् धारय (शरदः)वर्षाणि (शतम्) ॥

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