अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 63
ऋषिः - आत्मा
देवता - सोम
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
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मा हिं॑सिष्टंकुमा॒र्यं स्थूणे॑ दे॒वकृ॑ते प॒थि। शाला॑या दे॒व्या द्वारं॑ स्यो॒नं कृ॑ण्मोवधूप॒थम् ॥
स्वर सहित पद पाठमा । हिं॒सि॒ष्ट॒म् । कु॒मा॒र्य᳡म् । स्थूणे॒ इति॑ । दे॒वऽकृ॑ते । प॒थि । शाला॑या: । दे॒व्या: । द्वार॑म् । स्यो॒नम् । कृ॒ण्म॒: । व॒धू॒ऽप॒थम् ॥१.६३॥
स्वर रहित मन्त्र
मा हिंसिष्टंकुमार्यं स्थूणे देवकृते पथि। शालाया देव्या द्वारं स्योनं कृण्मोवधूपथम् ॥
स्वर रहित पद पाठमा । हिंसिष्टम् । कुमार्यम् । स्थूणे इति । देवऽकृते । पथि । शालाया: । देव्या: । द्वारम् । स्योनम् । कृण्म: । वधूऽपथम् ॥१.६३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विवाह संस्कार का उपदेश।
पदार्थ
(स्थूणे) हे दोनोंस्थिर स्वभाववाली [स्त्री-पुरुषों की पङ्क्ति !] (कुमार्यम्) कुमारी [कन्याअर्थात् वधू] को (देवकृते) विद्वानों के बनाये (पथि) मार्ग में (मा हिंसिष्टम्)मत कष्ट पाने दो। (देव्याः) व्यवहारयोग्य (शालायाः) शाला के (स्योनम्) सुखदायक (द्वारम्) द्वार को (वधूपथम्) वधू का मार्ग (कृण्मः) हम बनाते हैं ॥६३॥
भावार्थ
सब स्त्री-पुरुष प्रयत्न करें कि पितृकुल से पृथक् होकर वधू प्रसन्न रहे और जैसे सुन्दर स्वच्छशाला के सुन्दर स्वच्छ द्वार में होकर जाने-आने में सुख होता है, वैसे हीसुप्रबन्धवाले गृहाश्रम में वधू को सुख मिले ॥६३॥
टिप्पणी
६३−(मा हिंसिष्टम्) दुःखं माप्रापयतम् (कुमार्यम्) कुमारीम्। वधूम् (स्थूणे) रास्नासास्नास्थूणावीणाः। उ०३।१५। ष्ठा गतिनिवृत्तौ-न प्रत्ययः, टाप्, आकारस्य ऊत्वं नस्य णत्वं च। हेस्थिरस्वभावे स्त्रीपुरुषपङ्क्ती (देवकृते) विदुषां रचिते (पथि) मार्गे (शालायाः) (देव्याः) व्यवहारयोग्यायाः (स्योनम्) सुखप्रदम् (कृण्मः) कुर्मः (वधूपथम्) वधूगमनमार्गम् ॥
विषय
शाला का द्वार वधू के लिए स्योन हो
पदार्थ
१. घर में पुरुष व स्त्री घर के दो स्तम्भों के समान होते हैं, जो घर का धारण करते हैं। हे (स्थूणे) = घर के स्तम्भरूप स्त्री-पुरुषो! आप (देवकृते पथि) = उस महान् देव प्रभु से निश्चित किये गये मार्ग पर चलते हुए, अर्थात् अपने-अपने कर्तव्य-कर्मों को करते हुए (कुमार्यम्) = इस तुम्हारे घर में प्राप्त कुमारी युवति को (मा हिंसिष्ट) = हिंसित मत करो। घर में बड़े स्त्री-पुरुषों का यह कर्तव्य होता है कि आई हुई नववधू को किसी प्रकार से पीड़ित न होने दे। वह यहाँ परायापन ही न अनुभव करती रहे। २. घर के सब स्त्री-पुरुष व्रत लें कि हम इस (दैव्याः शालाया:) = दिव्यगुणों से व प्रकाश से युक्त शाला के (द्वारम्) = द्वार को (स्योनम् वधूपथम्) = सुखकर व वधू का मार्ग (कृण्म:) = बनाते हैं, अर्थात् 'यह वधू इस शाला के द्वार में प्रवेश करती हुई सुख ही अनुभव कर', ऐसी व्यवस्था करते हैं।
भावार्थ
घर के सब स्त्री-पुरुषों का यह कर्तव्य है कि वे अपने व्यवहार से नववधू के लिए किसी प्रकार के परायेपन व असुविधा को अनुभव न होने दें।
भाषार्थ
(स्थूणे) हे घर के दो स्तम्भो ! अर्थात् वृद्ध माता-पिता ! (देवकृते) देवों द्वारा निश्चित किये हुए (पथि) गृहस्थमार्ग पर या सुपथ पर वर्तमान (कुमार्यम्) कुमारी नववधू को (मा हिंसिष्टम्) तुम दोनों कष्ट न पहुंचाओ। (देव्याः शालायाः) दिव्य शाला के (स्योनम्) सुखदायक (द्वारम्) दरवाजे को, (वधूपथम्) वधू के आने-जाने का मार्ग (कृण्मः) हम अबाधित करते हैं।
टिप्पणी
[शालायाः- शाला का अभिप्राय है विशाल कोठी। देखो वैदिक शाला (अथर्व० ९।३।१-३१)। इसमें एक कमरा चाहिये हविः रखने के लिये (हविर्धानम्); एक (अग्निशाला) अर्थात् यज्ञशाला; घर में जितनी पत्नियां अर्थात् पुत्रों की पत्नियां हों प्रत्येक के लिए पृथक्-पृथक् कमरा (पत्नीनाम् सदनम्); तथा बैठक (सदः) अतिथि देवों के लिए पृथक् कमरा (देवानां सदः) (अथर्व० ९।३।७); गौओं तथा अश्वों के लिए गोशाला तथा अश्वशाला (९।३।१३); यज्ञशाला (९।३।१४); शाला के मध्यभाग में शेवधि अर्थात् Savings की निधिरूप, दृढ़निर्मित कमरा विमानम् उदरं शेवधिभ्यः (९।३।१५); रसद रखने का कमरा (विश्वान्तं बिभ्रती ९।३।१६)। रसोई तथा जल के कमरे (९।३।२२)। इस सूक्त में शाला के अन्य भेद भी दर्शाए हैं। यथा द्विपक्षा, चतुष्पक्षा, षट्पक्षा, अष्टापक्षा, दशपक्षा आदि शाला (९।३।२०, २१)। पक्ष=Side Room] [व्याख्या - वर अपने माता-पिता से प्रार्थना करता है कि आप दोनों इस घर के स्तम्भ हो, आधार हो। माता-पिता के आशीर्वाद तथा उन की देखभाल में नवयुवक पति-पत्नी गृहस्थजीवन को आनन्दमय तथा समुन्नत कर सकते हैं। इस लिये पति-पत्नी को चाहिये कि वे माता-पिता को अपने गृहजीवन के आधार-स्तम्भ समझा करें। वर माता-पिता से यह भी प्रार्थना करता है कि दिव्यगुणी लोगों द्वारा निश्चित किये गए कर्तव्यपथ पर चलती हुई इस कुमारी को आप किसी प्रकार भी कोई कष्ट न पहुंचाइये। कुमारी देव निश्चित कर्तव्यपथ से भ्रष्ट हो कर यदि आसुरपथ या राक्षसपथ पर चलने लगे तो इसे समझाने और सुपथ पर लाने का अधिकार बुजुर्गों को अवश्य प्राप्त है। वे समझा कर, सान्त्वना दे कर, सामविधि तथा दण्ड विधि द्वारा इसे देवमार्ग पर लाने का सदा यत्न करते रहें। पति अपने गृह को देवी-शाला अर्थात् देवगृह कहता है। पति इस देवगृह के सुखदायक द्वार में प्रवेश का अबाधित अधिकार देवपथ पर चलने वाली इस पत्नी को स्वयं भी देता है, और अपने माता-पिता से भी इस अधिकार को देने की प्रार्थना करता है।]
विषय
गृहाश्रम प्रवेश और विवाह प्रकरण।
भावार्थ
हे स्त्री पुरुष ! (कुमार्यम्) कुमारी कन्या को (देवकृते) देव, परमेश्वर के बनाये (स्थूणे) इस स्थिर (पथि) संसार-मार्ग में (मा हिंसिष्टम्) मत मारो। हम लोग (देव्याः शालायाः) दिव्यगुण से युक्त शाला के (द्वारम्) द्वार को और (वधूपथम्) नववधू के मार्ग को भी (स्योनम् कृण्मः) सदा सुखकारी शान्तिमय बनाया करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सावित्री सूर्या ऋषिका। आत्मा देवता। [१-५ सोमस्तुतिः], ६ विवाहः, २३ सोमार्कों, २४ चन्द्रमाः, २५ विवाहमन्त्राशिषः, २५, २७ वधूवासः संस्पर्शमोचनौ, १-१३, १६-१८, २२, २६-२८, ३०, ३४, ३५, ४१-४४, ५१, ५२, ५५, ५८, ५९, ६१-६४ अनुष्टुभः, १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १५ आस्तारपंक्तिः, १९, २०, २३, २४, ३१-३३, ३७, ३९, ४०, ४५, ४७, ४९, ५०, ५३, ५६, ५७, [ ५८, ५९, ६१ ] त्रिष्टुभः, (२३, ३१२, ४५ बृहतीगर्भाः), २१, ४६, ५४, ६४ जगत्यः, (५४, ६४ भुरिक् त्रिष्टुभौ), २९, २५ पुरस्ताद्बुहत्यौ, ३४ प्रस्तारपंक्तिः, ३८ पुरोबृहती त्रिपदा परोष्णिक्, [ ४८ पथ्यापंक्तिः ], ६० पराऽनुष्टुप्। चतुःषष्ट्यृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Surya’s Wedding
Meaning
O pillars of the home and family, father and mother of the bridegroom, blest by divinities with a noble son, please do not hurt the maiden, the bride, be kind and loving. We open and decorate the auspicious door of the house blest by divinities and make it a beautiful path of entry for the bride’s welcome.
Translation
O two pillars, may you not hurt the maiden, traversing the path laid by the enlightened ones. We make the door of the divine home a pleasant path for the bride.
Translation
Let, these two pillers standing up on the path of Yajna, not hurt this beautiful bride, we, the family members make the entrance of the magnificent house easy and comfortable for the treading of bride.
Translation
Harm not the girl, ye men and women, who travels upon the path designed by God. We make auspicious the portal of the heavenly home, and the road on which the bride travels to the house of her husband.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६३−(मा हिंसिष्टम्) दुःखं माप्रापयतम् (कुमार्यम्) कुमारीम्। वधूम् (स्थूणे) रास्नासास्नास्थूणावीणाः। उ०३।१५। ष्ठा गतिनिवृत्तौ-न प्रत्ययः, टाप्, आकारस्य ऊत्वं नस्य णत्वं च। हेस्थिरस्वभावे स्त्रीपुरुषपङ्क्ती (देवकृते) विदुषां रचिते (पथि) मार्गे (शालायाः) (देव्याः) व्यवहारयोग्यायाः (स्योनम्) सुखप्रदम् (कृण्मः) कुर्मः (वधूपथम्) वधूगमनमार्गम् ॥
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