Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 32
    ऋषिः - आत्मा देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
    0

    इ॒हेद॑साथ॒ नप॒रो ग॑माथे॒मं गा॑वः प्र॒जया॑ वर्धयाथ। शुभं॑ यतीरु॒स्रियाः॒ सोम॑वर्चसो॒विश्वे॑ दे॒वाः क्र॑न्नि॒ह वो॒ मनां॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ह । इत् । अ॒सा॒थ॒ । न । प॒र: । ग॒मा॒थ॒ । इ॒मम् । गा॒व॒: । प्र॒ऽजया॑ । व॒र्ध॒नया॒थ॒ । शुभ॑म् । य॒ती॒: । उ॒स्रिया॑: । सोम॑ऽवर्चस: । विश्वे॑ । दे॒वा: । क्रन् । इ॒ह । व॒: । मनां॑सि ॥१.३२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहेदसाथ नपरो गमाथेमं गावः प्रजया वर्धयाथ। शुभं यतीरुस्रियाः सोमवर्चसोविश्वे देवाः क्रन्निह वो मनांसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इह । इत् । असाथ । न । पर: । गमाथ । इमम् । गाव: । प्रऽजया । वर्धनयाथ । शुभम् । यती: । उस्रिया: । सोमऽवर्चस: । विश्वे । देवा: । क्रन् । इह । व: । मनांसि ॥१.३२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 32
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विवाह संस्कार का उपदेश।

    पदार्थ

    (गावः) हे गतिशील [पुरुषार्थी कुटुम्बी लोगो !] (इह इत्) यहाँ पर ही [हम में] (असाथ) तुम रहो, (परः) दूर (न गमाथ) मत जाओ, और (इमम्) इस [पुरुष] को (प्रजया) प्रजा [पुत्र, पौत्र, सेवक आदि] से (वर्धयाथ) बढ़ाओ। (शुभम्) शुभ रीति से (यतीः) चलती हुई (उस्रियाः) निवास करनेवाली स्त्रियाँ और (सोमवर्चसः) ऐश्वर्य के साथ प्रतापवाले (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग [अर्थात् घर के विद्वान् स्त्री-पुरुष] (वः)तुम्हारे (मनांसि) मनों को (इह) यहाँ [गृह कार्य में] (क्रन्) करें ॥३२॥

    भावार्थ

    सब कुटुम्बी लोगपुरुषार्थ करके मिलकर धैर्य से घर में रहें और सन्तान आदि को शिक्षा दान सेबढ़ावें और सम्पत्ति और ऐश्वर्य बढ़ाकर गृहाश्रम को शोभायमान करें ॥३२॥इस मन्त्रका प्रथम पाद आ चुका है-अ० ३।८।४ ॥

    टिप्पणी

    ३२−(इह) अत्र। अस्मासु (इत्) एव (असाथ) भवत (न) निषेधे (परः) परस्तात्। दूरम् (गमाथ) गच्छत (इमम्) पुरुषम् (गावः) गमेर्डोः।उ० २।६७। गच्छतेर्डोप्रत्ययः। गौः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। हे गतिशीलाःपुरुषार्थिनः कुटुम्बिनः (प्रजया) सन्तानसेवकादिरूपया (वर्धयाथ) वर्धयत (शुभम्)शुभरीत्या (यतीः) गच्छन्त्यः (उस्रियाः) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। वसनिवासे-रक्, स्वार्थे घ प्रत्ययः। निवासशीलाः स्त्रियः (सोमवर्चसः) ऐश्वर्येणप्रतापिनः (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (क्रन्) कुर्वन्तु (इह) गृहाश्रमे (वः) युष्माकम् (मनांसि) चित्तानि ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सोमवर्चसः गावः

    पदार्थ

    १.हे (गाव:) = गौवो! (इह इत असाथ) = तुम इस घर में ही होओ, (पर: न गमाथ) = इस घर से दूर न जाओ। तुम (इमम्) = इस गृहपति को (प्रजया वर्धयाथ) = उत्तम सन्तान से बढ़ानेवाली होओ। गोदुग्ध का सेवन 'स्वस्थ शरीर, निर्मल मनवाली व दीप्त मस्तिष्क' सन्तान को प्राप्त कराता है। २. (शुभं यती:) = उत्तमता से गमन करती हुई [वायुर्वेषां सहचारं जुजोष] शुद्ध वायु में चिरागाहों में चरने के लिए जाती हुई (उस्त्रिया:) = ये गौएँ (सोमवर्चस:) = सोम वर्चस्वाली है-शान्तियुक्त शक्ति देनेवाली हैं। (इह) = इस संसार में (विश्वेदेवा:) = देववृत्ति के सब पुरुष (वः मनांसि क्रन्) = तुम्हारे मनों को करें, अर्थात् तुम्हें घरों पर रखने के लिए हृदय से इच्छा करें। सब समझदार लोग यह समझ लें कि गौओं से घर सब प्रकार से समृद्ध बनता है।

    भावार्थ

    गौएँ सौम्य दुग्ध देती हुई घर की समृद्धि व उत्तम सन्तति का साधन बनती हैं। सब देव इन्हें घरों पर रखने की कामना करते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (गावः) हे गौओ! (इह) इस घर में (असाथ, इत्) सदा रहो, (परः) इस घर से परे (न, गमाथ) न जाओ। (प्रजया) सन्तानों द्वारा (इयम्) इस गृहपति को (वर्धयाथ) बढ़ाती रहो। (शुभम्) शोभायुक्त गोशाला में (यतीः) हे गौओ! तुम जाओ, (उस्रियाः) सूर्य की किरणों के सदृश शुद्ध, तथा (सोमवर्चसः) दुग्धरूपी तेज वाली तुम होओ। (विश्वे देवाः) घर के सब देव अर्थात् मातृदेव, पितृदेव आदि (इह) इस घर में (वः) तुम्हारे (मनांसि) मनों को (क्रन्) प्रसन्न करें।

    टिप्पणी

    [उस्रियाः, उस्रः=वसतीति उस्रः=रश्मिः (उणा० २।१३, महर्षि दयानन्द)। उस्रिया इति गोनाम (निरु० ४।३।१९); तथा “वीतं पातं पयः उस्रियायाः" (ऋ० १।१५३।४) उस्रा= उस्राविणोऽस्यां भोगाः (निरु० ४।३।१९)=उत्+स्रु गतौ, जिस से कि दूध स्रवित होता है। सोम=दूध। यथा “अनूपे गोमान् गोभिरक्षाः सोमो दुग्धाभिरक्षाः" (ऋ० ९।१०७।९) में, दोही गई गौओं से सोम अर्थात् दूध क्षरित होता है, ऐसा कहा है] व्याख्या—गृहस्थी को घर में गौएं रखनी चाहियें। दूध से छुटी गौओं को पराये हाथ बेचना न चाहिये। गौएं निज सन्तानों अर्थात् बछड़े बछड़ियों द्वारा गृहपति को और गृहपति की सन्तानों को दूध, घृत देकर बढ़ाती हैं। गौओं की गोशाला सुन्दर और शोभायुक्त होनी चाहिये। इस से गौएं स्वस्थ तथा प्रसन्न रहती हैं। उन्हें स्नान आदि द्वारा शुद्ध और साफ रखना चाहिये जैसे कि सूर्य की किरणें शुद्ध और साफ होती हैं। घर के बुजुर्गों को चाहिये कि सेवा द्वारा गौओं के मनों को सदा प्रसन्न रखें।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    गृहाश्रम प्रवेश और विवाह प्रकरण।

    भावार्थ

    हे (गावः) गौवो या गमन करने योग्य स्त्रियो ! तुम (इह इत्) यहां ही पतिगृह में (असाथ) रहो। तुम (परः) दूर देश में (न गमाथ) मत जाओ। (इमं) इस अपने पालक को (प्रजया) उत्तम सन्तान से (वर्धयाथ) बढ़ाओ। हे (उस्त्रियाः) गौवो, या उत्तम आचार वाली स्त्रियो ! आप लोग (शुभं यतीः) सुन्दरता से इधर उधर विचरती हुई (सोमवर्चसः) सोम, चन्द्र के समान कान्ति वाली, श्वेत और लाल वर्ण की या सौम्य होकर रहो। (विश्वे देवाः) समस्त विद्वान्, श्रेष्ठ पुरुष (वः) तुम्हारे (मनांसि) चित्तों को (इह क्रन्) यहां ही लगाये रखें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावित्री सूर्या ऋषिका। आत्मा देवता। [१-५ सोमस्तुतिः], ६ विवाहः, २३ सोमार्कों, २४ चन्द्रमाः, २५ विवाहमन्त्राशिषः, २५, २७ वधूवासः संस्पर्शमोचनौ, १-१३, १६-१८, २२, २६-२८, ३०, ३४, ३५, ४१-४४, ५१, ५२, ५५, ५८, ५९, ६१-६४ अनुष्टुभः, १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १५ आस्तारपंक्तिः, १९, २०, २३, २४, ३१-३३, ३७, ३९, ४०, ४५, ४७, ४९, ५०, ५३, ५६, ५७, [ ५८, ५९, ६१ ] त्रिष्टुभः, (२३, ३१२, ४५ बृहतीगर्भाः), २१, ४६, ५४, ६४ जगत्यः, (५४, ६४ भुरिक् त्रिष्टुभौ), २९, २५ पुरस्ताद्बुहत्यौ, ३४ प्रस्तारपंक्तिः, ३८ पुरोबृहती त्रिपदा परोष्णिक्, [ ४८ पथ्यापंक्तिः ], ६० पराऽनुष्टुप्। चतुःषष्ट्यृचं सूक्तम्।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Surya’s Wedding

    Meaning

    O cows, words of wisdom and rays of light, be here and stay, go not far, you being active, fertile and generous, advance and raise this wedded couple far high in life with pregeny. O Vishvedevas, divinities of the world, noble wedded couples, parents and all other seniors, blest with the splendour of Soma, wish this new couple to be noble, loving and harmonious at heart toward each other.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May you remain just here. Do not go away. O cows,may you make him prosper with progeny. O cows, lustrous like moon, you bring good fortune. May all the bounties of nature endear this place to your hearts.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let these cows remain here, indeed, and let them not go further, let them strengthen this man with his plenteous' progeny and with their plenteous progeny. Ye married men and women you all attaining good become bright and strong with Soma, juice of fruit and herbs. May all the men make your mind concentrated in this household life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O enterprising women, remain ye even here, go not far away: strengthen this man with plenteous offspring! O noble women, be ye the harbingers of weal and lustrous like the moon. May all learned persons fix your minds here in domestic life!

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३२−(इह) अत्र। अस्मासु (इत्) एव (असाथ) भवत (न) निषेधे (परः) परस्तात्। दूरम् (गमाथ) गच्छत (इमम्) पुरुषम् (गावः) गमेर्डोः।उ० २।६७। गच्छतेर्डोप्रत्ययः। गौः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। हे गतिशीलाःपुरुषार्थिनः कुटुम्बिनः (प्रजया) सन्तानसेवकादिरूपया (वर्धयाथ) वर्धयत (शुभम्)शुभरीत्या (यतीः) गच्छन्त्यः (उस्रियाः) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। वसनिवासे-रक्, स्वार्थे घ प्रत्ययः। निवासशीलाः स्त्रियः (सोमवर्चसः) ऐश्वर्येणप्रतापिनः (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (क्रन्) कुर्वन्तु (इह) गृहाश्रमे (वः) युष्माकम् (मनांसि) चित्तानि ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top